चंडीगढ़ : हरियाणा में सरकारी वकीलों के पदनाम से “अटॉर्नी” शब्द बदलने पर राज्य सरकार मौन

- जुलाई, 2020 में एडवोकेट ने लिखा था पत्र, सरकार ने प्रॉसिक्यूशन विभाग से मांगे थे कमेंट
- संसद ने 1976 में एडवोकेट्स कानून, 1961 में संशोधन कर हटा दिया था अटॉर्नी शब्द : हेमंत
राजेन्द्र भारद्वाज। चंडीगढ़
हरियाणा के अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) विभाग में नियमित रूप से नियुक्त होने वाले सरकारी वकीलों के पदनाम में प्रयुक्त अटॉर्नी शब्द जिसका हिंदी अनुवाद होता है न्यायवादी, को बदल कर उसके स्थान पर अन्य उपयुक्त शब्द का प्रयोग करने के सम्बन्ध में छः माह पूर्व दायर एक प्रतिवेदन/याचिका पर प्रदेश सरकार की न्याय प्रशासन शाखा (विभाग), जो सीधे मुख्यमंत्री के अधीन आता है एवं जिसके प्रशासनिक सचिव राज्य के गृह सचिव ही होते है, के द्वारा अभियोजन विभाग के निदेशक से इस सम्बन्ध में अपने कमैंट्स (टिप्पणी ) भेजने को कहा गया था हालांकि आज तक याचिकाकर्ता को राज्य सरकार से इस सम्बन्ध में की गयी कार्यवाही बाबत कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने जुलाई,2020 में हरियाणा के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, तत्कालीन मुख्य सचिव केशनी अरोड़ा, गृह एवं न्याय प्रशासन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विजय वर्धन (जो अब मुख्य सचिव हैं), राज्य के महाधिवक्ता (एजी ) और विधि परामर्शी (एलआर) आदि को इस सम्बन्ध में अलग अलग प्रतिवेदन भेजे थे। न्याय-प्रशासन विभाग की जेल एवं न्यायिक शाखा-1 ने 4 अगस्त 2020 को निदेशक, अभियोजन विभाग को पत्र भेजकर इस सम्बन्ध में टिप्पणी करने को कहा ताकि मामले में आगामी कार्यवाही की जा सके. इसके दो माह बाद 1 अक्टूबर 2020 को उक्त शाखा ने पुन: एक रिमाइंडर (स्मरण पत्र ) जारी कर इस विषय पर विभाग के निदेशक को तुरंत अपने कमैंट्स भेजने को लिखा है. कुछ माह पूर्व इस सम्बन्ध में दायर एक आरटीआई के जवाब से हेमंत को यह जानकारी प्राप्त हुई। ज्ञात रहे कि हरियाणा राजकीय अभियोजन विधि सेवा (ग्रुप ए) एवं (ग्रुप बी) में प्रदेश सरकार की नियमित विधि सेवा में नियुक्त सरकारी वकीलों को तीन श्रेणियों – डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (डीए) अर्थात जिला न्यायवादी, डिप्टी डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी(डीडीए)- उप जिला न्यायवादी एवं असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी( एडीए)- सहायक जिला न्यायवादी का पदनाम दिया गया है. इनका चयन हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी ) द्वारा लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर किया जाता है जबकि राज्य सरकार के न्याय प्रशासन विभाग द्वारा इन्हें सेवा में नियुक्त किया जाता है.इनकी तैनाती प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों /कार्यालयों में और प्रदेश की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों (न्यायालयों ) में न्याय-प्रशासन विभाग द्वारा की जाती है। हालांकि प्रदेश के सरकारी बोर्डो/निगमों/लोक उपक्रमों आदि द्वारा अपने कार्यालयों में विधि अधिकारी ( लॉ ऑफिसर्स) की नियुक्ति स्वयं अपने आधार पर की जाती है परन्तु उक्त सरकारी वकीलों को भी इनमें डेपुटेशन (प्रतिनियुक्ति) पर कुछ समय के लिए भेजा जाता है। बहरहाल, इस सम्बन्ध में हेमंत ने अपनी याचिका में लिखा है कि प्रदेश के उक्त सरकारी वकीलों के पदनाम से अटॉर्नी (न्यायवादी) शब्द को बदलकर या तो उसके स्थान पर गवर्नमेंट एडवोकेट (राजकीय अधिवक्ता ) या कोई अन्य शब्द डाल दिया जाए. उन्होंने इस सम्बन्ध में कानूनी हवाला देते हुए बताया कि हमारे देश के एडवोकेट्स एक्ट अर्थात अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में 45 वर्ष वर्ष 1976 में संसद द्वारा संशोधन कर अटॉर्नी शब्द को उसमें से हटा दिया गया था एवं तब से आज तक मौजूदा तौर पर केवल दो प्रकार के वकीलो को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है- पहले एडवोकेट और दूसरे सीनियर एडवोकेट्स, जिन्हे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह दर्जा प्रदान किया जाता है। हेमंत ने आगे बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 में हालांकि अटॉर्नी जनरल फॉर इंडिया अर्थात भारत के महान्यायवादी का उल्लेख है जो देश का प्रथम/सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है जिस पद पर ऐसे वरिष्ठ अधिवक्ता या कानूनविद को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त जाता है जो सुप्रीम कोर्ट का जज बनने की योग्यता रखता हो। जहाँ तक प्रदेशों का विषय है तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 165 में हर राज्य में एडवोकेट जनरल फॉर स्टेट अर्थात राज्य के महाधिवक्ता के रूप में ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है जो हाई कोर्ट का जज बनाने की योग्यता रखता हो. परन्तु न तो एडवोकेट जनरल के पदनाम में और न ही उनके कार्यालय में कार्यरत सीनियर एडिशनल,एडिशनल, डिप्टी,असिस्टेंट एडवोकेट जनरल के पदनाम में अटॉर्नी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। हेमंत ने मांग की है कि हरियाणा के सरकारी वकीलों के पदनाम में अटॉर्नी अर्थात न्यायवादी शब्द वर्तमान रूप में किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं है. उन्होंने बताया कि जब इन सरकारी वकीलों की नियुक्ति होती है तो राज्य सरकार के न्याय-प्रशासन विभाग द्वारा दो अलग गजट नोटिफिकेशनस जारी कर इन्हे समस्त प्रदेश के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी ) की धारा 2(7) में इन्हें सरकारी प्लीडर एवं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी ) की धारा 24 में लोक अभियोजक (पब्लिक प्रासीक्यूटर ) के रूप में पदांकित/नियुक्त किया जाता है एवं सम्बंधित सिविल/क्रिमिनल अदालतों में यह उक्त पदनामों से ही कार्य करते हैं और हस्ताक्षर भी करते है। अत: अटॉर्नी शब्द का प्रयोग इनके आधिकारिक कार्यों में कहीं भी प्रयोग नहीं होता है. इसके अतिरिक्त जब सरकारी वकीलों को विभागों में कानूनी राय आदि देने और लीगल आलेखन/पुनर्निरीक्षण आदि विधि कार्यो के लिए तैनात किया जाता है, तब भी इनके पदनाम में अटॉर्नी शब्द के प्रयोग का कोई औचित्य नहीं बनता।